मैं लौटना नहीं चाहती थी
फिर अपनी डगर में
लहरें बढ़ती तो छोड़ देती
मुझे चट्टानों की गोद में
लहरों ने ख़ुद ही उठा लिया था मुझे
तट पर अकेला पाकर ना जाने किस भाव से
अच्छा लगता मुझे समुंदर के साथ खेलना
मैं सम्मोहित सी देखती लहरों का खेल
ढलते सूरज को समुंदर के गर्भ में सोते हुए
हवा के झोंकों के साथ बहती कल कल करती
चट्टानों के दरवाजे खटखटा ती ठंडी हवा
करती इंतजार कहती मुझसे बार-बार
कल फिर आ जाना इंतजार करती
मेरी लहरें तुम्हारा बार-बार।
सीमा वालिया (सागर किनारे प्रतियोगिता | सहभागिता प्रमाण पत्र )
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