समुद्र किनारे बैढ़ कर पूरे हुए मन में उठे कई सवाल ,
लहरों सा जीवन है अपना हर पल हिचकोले खाये ,
कभी उठे इतना ऊपर की गर्वित कर कर जाये ,
कभी गिरे इतना नीचे के सर उठ ही ना पायें ,
उठने , गिरने के इस तालमेल में संतुलन हमें बैठाना है ,
समुद्र के पानी जैसा हमें अपनी मौज में बहते जाना है ,
कभी डरो ना ज्वार -भाटे से , ये जीवन के ताने -वाने है,
कभी ख़ुशी है कभी है ग़म जो, दिन- रात से आने – जाने है ,
कभी करो ना घमंड अपने पर , मिलजुल आगे बड़ते जाना है ,
क्यूँकि समंदर में पानी अपार होता है , पर वो नदियों का उधार होता है ,
ज़िन्दगी की परेशानियों को समुद्र की रेत पर लिख डालिए ,
दो दिन की ज़िन्दगी है , प्रेम की लहरों से धो डालिए …………
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