गुजरे उस राह से एक लंबे
अरसे के बाद
सब कुछ बदल चुका है
नहीँ बदला तो सिर्फ
वो पीपल का पेड़
जो राह ताक रहा है
कोई आएगा बैठेगा मेरी
छाँव में
नहीं बदली
वो चाचा की चौकी
जो राह ताक रही उन
संगी साथियों की
जो शाम को बैठ कर
बतियाएंगे सुख दुख
मेरे संग
नहीं बदला वो गाँव
का खैल का मैदान
जो राह ताक रहा
उन बच्चों की
खेलेंगे मेरे संग
कोई क्रिकेट तो कोई फुटबाल
पर ये नासमझ क्या जाने
इस भागमदौड़ की जिंदगी
भूल गए खुद को
तो बैठ कर क्या सोचे पेड़ के नीचे
मन मिलते नही तो क्या बतियाये
चाचा की चौकी पर बैठकर
छीन लिया बचपन मोबाईल ने तो
क्यों खेले बाहर मैदान में आकर
सरिता तिवाड़ी (पारीक) (UBI उस गली में प्रतियोगिता | सम्मान पत्र)
460
सुन्दर सर्जन….