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सरिता तिवाड़ी (पारीक ) ( चक्का जाम प्रतियोगिता)

दीपक अपने पिता का इकलौता बेटा…घर में अपने नाम को सार्थक करने भरपूर रौशनी देने वाला पढ़ाई में होनहार युवा…..
पापा पापा…. मेरा सपना पूरा हो गया । कल से मुझे मेरा कार्यभार सम्भालना है मेरा नियुक्तिपत्र आ गया है….
अब देखना पापा आपका ये बेटा कलेक्टर की कुर्सी पर बैठकर कैसे आपका और अपने शहर का नाम रौशन करता है । मैं पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करूंगा ताकि आप अपने बुढ़ापे की इस लाठी पर गर्व महसूस कर सको। मैं हर जरूरतमंद का सहारा बनूगा । अरे बेटा चुप रह अब ! खुद को ही नजर लगायेगा क्या ?माँ ने बीच में ही टोकते हुए दीपक को चुप किया । अरे माँ आप भी
इतने मैं आसपड़ोस वाले आ गए शर्मा जी को बधाई देने
अरे शर्मा जी अब तो दावत (सहभोज) हो जाये । बेटा कलेक्टर जो बन गया । हाँ हाँ क्यों नही ? सबको मिलेगी ! बस एकबार ये अपनी ड्यूटी ज्वाइन करके आ जाये उसके बाद पूरे मोहल्ले को दावत मिलेगी।
अगले दिन दीपक सुबह जल्दी तैयार होकर अपनी गाड़ी लेके रवाना हो गया और बोला आज पहला दिन है समय से थोड़ा जल्दी जाऊंगा आखिर इतनी मैहनत के बाद मंजिल मिली है ।
रास्ते में चक्का जाम के कारण 15 मिनट ज्यादा लग गए जैसे ही जाम कुछ खुलने लगा । दीपक खुद ड्राइवर की सीट पर बैठा और बोला अभी मुझे गाड़ी चलाने दो । थोड़ा जल्दी पहुंचना है । और तेजी के साथ अपनी गाड़ी को दौड़ाने की कोशिश करते हुए सामने से आ रहे ट्रक से टकरा गया और टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि दीपक लहूलुहान हालात में सड़क पर गिर पड़ा और मौके पर ही उसकी मौत हो गई । अपने गन्तव्य पर जल्दी पहुचने और वर्तमान यातायात की समस्या के बीच जूझते हुए दीपक जिंदगी के आखरी गन्तव्य पर पहुंच गया।

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