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श्वेता प्रकाश कुकरेजा।(विधा : लघुकथा) (साथी हाथ बढ़ाना | सम्मान-पत्र)

सब शून्य हो गया..जैसे ही उसने सुना..”मिस्टर गौरव आपको आइसोलेशन वार्ड में रहना पड़ेगा 15 दिन,चलिए”…
अभी सदमे से वह उबर न पाया कि तभी फ़ोन बजा….”हेलो,भैयाजी…आप आ गए का?”
“हाँ, अभी एयरपोर्ट पर हूँ.. पर”
“ठीक भैयाजी,तो हम जावत है,अब न आबी, हमाओ मर्द आवे नाइ दे राओ। अम्माजी खा खाना दे दाओ तो, राम राम।”…कह शीला ने फ़ोन काट दिया।
“माँ घर पर अकेली…” सोच के गौरव मन ही मन कांप रहा था।
उसने सभी रिश्तेदारों को फ़ोन लगाया,पर इस समय कोरोना संदिग्ध यमदूत से कम न था,सो कोई आगे न आया।
असहाय सा… आइसोलेशन वार्ड में बस माँ के बारे में सोच रहा था….तभी फ़ोन बजा… नया नंबर था..
“हेलो”
“हेलो, गौरव भाईजान ..आदाब,मैं समीना..आपकी पड़ोसी…आपका फ़ोटो लोकल न्यूज़ में देखा… अम्माजी के साथ कौन है?….हेलो भाईजान…आप सुन रहे है ना?”
“हाँ… हाँ.. माँ अकेली है।”
“आप फिक्र न करे…मैं जाती हूं उनके पास…अल्ला ताला सब ठीक करेंगे।’
गौरव कुछ न कह पाया….निःशब्द… लज्जित।
ये वही समीना थी जिसकी ईद की सेवईयां फेंक देता था वो….
सोसाइटी मीटिंग में मुसलमानों को बाहर निकालने की मांग सबसे पहले वही रखता था….
तभी वीडियो कॉल आया…”अरे! गौरव क्या हुआ बेटा, कहाँ है तू?”
“मैं… मैं ठीक हूँ माँ…. जल्दी घर आऊंगा” माँ को देख वह रो पड़ा।
“भाईजान आप फिक्र न करे,ऐसेे वक़्त इंसान ही इंसान के काम आता है।”
“समीना आपा, आप भगवान हो मेरे लिए, आपका उपकार जीवनभर याद रहेगा।”
…चैन की सांस ले सोने ही वाला था कि दूर कही से गाना सुनाई दिया..साथी हाथ बढ़ाना….

स्वरचित श्वेता प्रकाश कुकरेजा

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