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श्वेता प्रकाश कुकरेजा।(विधा : लघु कथा) (मानवता | सम्मान-पत्र)

‘वह रोज़ मुझे बस स्टॉप पर दिखती….
पीहू को देख मुस्कुराती….पर मुझे यह न भाता…
ज़माना बड़ा खराब है…बचपन की सुनी यह बात बैठ गई थी दिमाग में….
न जाने किस मंशा से देखती है पीहू को…
उसे देखते ही झट से मैंअपनी बिटिया को अपने पीछे कर लेती…
उस दिन जब ‘उसने’ पीहू को चॉक्लेट देनी चाही तो मैंने सख्ती से माना कर दिया…
क्यों रोज़ रोज़ आ जाती है ‘वो’…ऐसे लोगो का तो कुछ और ही काम होता है।मेरी बेटी को ही नज़र क्यों लगाती है।
उस रोज स्टॉप पहुँचने में देरी हो गई…
भागती ,दौड़ती जैसे ही पहुँची…. पीहू नहीं थी।
मैंने हर जगह देखा…पीहू कहीं नहीं थी…
और ‘वो’ भी नहीं थी।मेरा माथा ठनका..
रोते हुए मैंने आशीष को फ़ोन लगाया….”मेरी बच्ची मुझे ला कर दो…ज़रूर वही ले गई होगी।…मेरी पीहू”
आशीष के आते ही हमने पुलिस थाने जाने की सोची।
पीहू का फोटो लेने हम घर की ओर चले…
“मेरा तो दिल बैठा जा रहा है…शाम के पांच बज गए..पता नहीं किस हाल में होगी पीहू”…कहते जैसे ही गेट पर पहुँची….. यह क्या?
पीहू तो ‘उसके’ साथ बैठी चिप्स खा रही थी।
मैंने दौड़ कर उसे गले लगाया।
“आज स्टॉप पर यह बस से नहीं उतरी,तो मुझे कुछ गड़बड़ महसूस हुई और मैं स्कूल पहुँच गयी। बड़ी मुश्किल से चौकीदार के साथ अंदर गयी तो देखा यह कक्षा में आखिरी बेंच पर सो रही थी।
इसने मुझे पहचाना तब स्कूल से घर ला पायी।
यहाँ देखा तो ताला था….सो इसके संग यही बैठ गई।” ‘उसने’ पीहू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
मैं आत्मग्लानि से भर गई….शब्द नहीं थे..बस ‘उससे’ लिपट खूब रोई।
‘उसने’ भी ममता भरा हाथ फेर मेरे माथे को चूमा।
‘हम किन्नरों में भी ममता होती है….बस तुम सब समझ नहीं पाते…..हम भी मानव है।”….यह कह ‘वो’ पीहू को प्यार कर चली गई। सच ‘वो’ भी मानव है।
आज मानवता का पाठ एक किन्नर सीखा गयी।
श्वेता प्रकाश कुकरेजा
१४-०३-२०२०

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