पढता गया,त्याग के प्रति सम्मान बढता गया,
भीगी पलकों के सगं,वीरों
के प्रति गर्व बढता गया,
कुछ कर दिखाने का जोश खुद से आता है,
भीगी पलकों का सा उदगार,एक आत्मीयता लाता है,
कभी कभी ऐसा उदगार, कहानी पढकर आता है,
कभी ऐसा ऐहसास, एक जींवत चित्रण से आता है,
मुझे मुशीं प्रेमचंद का किरदार, “होरी”याद आ गया,
मैं पढता गया, पलकें भीगती रहीं,संघर्ष पराकाष्ठा तक छा गया,
असामता में भी ऐसे किरदार पैदा हो रहे हैं,
भीगी पलकें प्रेरणा स्त्रोत,
बन संस्कारो को सींच रहे हैं…..।।
मैं यह कविता मिजोरम की हाकी टीम की खिलाड़ी को
समर्पित करता हूं जिसने भारत में पिताजी के देहासान के बावजूद सैमीफाइनल में चिल्ली के विरुद्ध भारत के
लिये खेलने को प्राथमिकता दी और भारत ने प्रतियोगिता जीती।
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