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शुची शुक्ला (UBI अक्षय प्रतियोगिता | सम्मान पत्र)

उसके क़दमों को जैसे पंख लग गए थे | लिफाफा हाथ में पकड़े उसकी बेचैनी उसे घर की ओर खींच रही थी | गुनगुनाते – मुस्कुराते जल्दी से जल्दी घर पहुंचना चाहता था वो | “ देखो मम्मी – मेरा दाखिला पत्र आ गया ” बेटे की उत्तेजना को हौले से मुस्कुरा कर संभाला रागिनी ने | अशोक ने जैसे ही नज़र अपनी पत्नी की तरफ उठाई – उन्हें उसकी आँखों में कुछ प्रश्न मिले –निरुत्तर से वो पलकें झुका फिर खो गये अपने अखबार में |
सभी कार्यों से निवृत होकर जब रागिनी अपने शयन कक्ष में पहुंची तो पाया अशोक किसी गहन सोच में डूबे हुए थे | वो जानती थी क्या सोच रहें हैं वो | “ सुनिए – बता दीजिये न सक्षम को – आखिर एकलौता बेटा है हमारा – अवश्य ही समझेगा हमारी परिस्थितियां ”| रागिनी के बोलते ही इशारे से उसे चुप करा दिया अशोक ने और एक ठंडी सांस लेकर बोले “करता हूँ मैं कुछ ”| पर आज ये वाक्य सर्पदंश सा चुभा उसके सीने में जो वो अपने पति के मुख से पिछले चौबीस सालों से सुन रही थी |
एक मध्यमवर्गीय परिवार के सीमित दायरों में असीमित – अक्षय प्रेम और सदभाव से जीवन यापन कर रहे थे ये दंपत्ति | रेलवे की साधारण सी नौकरी और अपनी समर्पित जीवन शैली से अपने पुत्र को उत्कृष्ट से उत्कृष्ट शिक्षा एवं सुविधाएँ देने का लक्ष्य ही बना लिया था दोनों ने | और सक्षम ने भी जैसे ठान लिया था कि अपने माता पिता के इस अक्षय प्रेम का सिला वो अपनी मेधा और उपलब्धियों से देगा | मील दर मील फासले तय करता हुआ वो अपनी मंजिल की तरफ बढ़ा जा रहा था | एक शासकीय महाविद्यालय से अभियांत्रिकी में स्नातक करने के पश्चात् उसका बस एक ही सपना शेष था – अपनी स्नाकोत्तर दीक्षा विदेश के एक अति प्रसिद्ध संस्थान से लेना |
और आज उसका वो सपना साकार होने को था | अनभिज्ञ था वो बस एक सत्य से – अपने पिता की आर्थिक कठिनाइयाँ | नहीं जानता था वो कि उसके पिता नहीं सक्षम हैं उसकी पढाई के खर्च को उठाने में – नहीं जानता था वो कि “भविष्य-निधि” की राशि तो पहले ही समाप्त हो गयी इस छोटे से आशियाने को बनाने – संवारने में | और उस पर बैंक का ऋण भी तो है जिसकी मासिक किश्त में एकमुश्त रकम चली जाती है उनकी तनख्वाह से | अनभिज्ञ था वो अपने माता पिता के हर संघर्ष से |
इधर ये पति पत्नी इस आशा में थे कि डिग्री पूरी होने पर बेटा किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के उच्च पद पर आसीन होकर उनके सारे कष्ट दूर कर देगा | पर उसका ये सपना ? ये भी तो उन्ही की जिम्मेदारी है ? एक कठोर निर्णय लिया उन्होंने – रख दिया अपना घर गिरवी और ले लिया एक और ऋण अपने बेटे का भविष्य सँवारने को | सभी आशंकाओं – अपेक्षाओं को निर्मूल करार देते हुए एक बार फिर स्थापित कर दिया कि माता पिता होते ही हैं अप्रतिम – अक्षय प्रेम के द्योतक |

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