सावन की पुकार
बूंदों की पायल ने की मधुर झंकार
नस नस अलापने लगे मेघ मलहार
धरा ने जैसे ओढ़ लिया हो मोतियों का हार
प्रकृति चहक उठी कर के सोलह श्रृंगार !
बूंदों ने धारण किया ज्यों ही घूँगरू की छम छम
मानो शाखों ने मृदंग पर ठोकी थाप मद्धम
वर्षा ने यौवन की दहलीज़ पर रखे कदम
बूंदों ने की बगावत और भरने लगे झड़ी का दम !!
झड़ी बदलती गयी और अब लिया विकराल रुप भारी
मूसलाधार सावन के आगमन की हुई तैयारी
वसुंधरा ने सरगम की लय पर दिखायी नव क्यारी
मेघों का तबला ढ़ोल पर धिनक धिनक धिन था जारी !
उसके प्यासे हृदय ने किया प्रियतम को याद
आँसुओं की लगी झड़ी नयन बने आशाढ़
उधर आकाश रोया बरस कर की पूरी मुराद
मगर क्या सुन पाया होगा उस बिरही की फरियाद ??
बहुत सुन्दर रचना 🎵🎶