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ललिता वैतीश्वरन ( समय प्रतियोगिता | युगान्तकारी रचना हेतू प्रशंसा पत्र )

मैं आज से कल की स्मृतियाँ पिरो कर जोड़ता हूँ
मैं समय हूँ ….मैं दिशायें मोड़ता हूँ

चलता जाता हूँ अविरत , न रुकता हूँ एक भी पल
सिर्फ बनता हूँ कल से आज और फिर आज से कल
स्मृति पटल पर यादों की एक चादर ओढ़ता हूँ
मैं समय हूँ ….मैं दिशायें मोड़ता हूँ

मेरी एक करवट से ज़िन्दगियाँ जायें बदल
न ठहरता किसी के बस में , जाता हूँ बस यूँ निकल
अजर ,अमर होने के भ्रम को तोड़ता हूँ
मैं समय हूँ ….मैं दिशायें मोड़ता हूँ

मेरी बाट देखता तू रह जाता आँखों को मल
कहलाता हूँ मैं अधीर , रहना मुझसे तू संभल !!
अभिमान औ अहंकार का दानव देह मरोड़ता हूँ
मैं समय हूँ ….मैं दिशायें मोड़ता हूँ

मुझे पकड़ जकड़ने वालों न समझना मुझको अचल !
मुट्ठी भर रेत की तरह जाऊँगा मैं फिसल ..
शीशे समान क्षण भंगुर सपनों को फोड़ता हूँ
मैं समय हूँ ….मैं दिशायें मोड़ता हूँ

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