इस’तोक्या’ मेंहैछिपी
संवेदना मानवता की
हर स्वतंत्रता की सीमा के पार
दिखती क्रूरता दानवता की
एक का आनन्द बन जाता जब
वजह दुख दूसरे का
तो क्या अपनी जवाबदेही से मुकर
कहें ‘तो क्या ?’
‘तो क्या’ से झलकती अपनी स्वार्थी मनमानी
दूसरों के प्रति उदासीनता और नादानी
‘तो क्या ‘ को अपने शब्द कोष से हटाना है
और संवेदना ,दया ,सहानुभूती को अपनाना है
©️ललिता वैतीश्वरन