मेरा मन एक अथाह सागर
लहरों को खिलाता हिचकोले
सारा दुख और दर्द समेटे
कहता चुप रह बिन मुँह खोले
मेरा मन एक अथाह सागर
कभी रहता नियंत्रित शांत
तटस्थ उदासीन विरक्त निश्चल
चाहता वह अविनत एकांत
मेरा मन एक अथाह सागर
न कभी रखता द्वेश राग
बलि देकर कुछ अपना ही अंश
प्रेम वर्षा से बरसाता अनुराग
मेरा मन एक अथाह सागर
छोर पर ऊँडेल आता अपने अंदर का प्यार
दे कर अपना सर्वस्व खुश होता
और लौट जाता होकर निहाल
मेरा मन एक अथाह सागर
अपनी गहराइयों में संजोये मोती
वरचस्वी विशाल हृदय रख कर भी
मेरी कीमत बस लवण जल ही है होती
मेरा मन एक अथाह सागर
कभी झांक कर लगाना अन्दाज
अनगिनत इसमें मनोभाव के तरंग
फिर भी न कभी डगमगाता मेरा जहाज़