हमने हमेशा अपने बड़े बुज़ुर्गों के मुँह से अक्सर यह वाक्य सुना है,’समय बड़ा बलवान’ ।
बचपन में हमें इस पेचीदा सवाल का कोई भी उत्तर नहीं मिल पाता था ।परंतु जैसे-२ हम बड़े होते गये व हमारी बुद्धि का विकास हुआ,हमें कमोबेश
समय का महत्व समझ में आने लगा ।
प्रागैतिहासिक काल से लेकर अाधुनिक काल तक की विकास यात्रा में ‘समय’के
चक्र की महती भूमिका है। प्रकृति भी समय के साथ अपने में परिवर्तन करती रहती है। पुराने काल में पाये जाने वाले
डायनासोर जैसे बड़े-२ भयानक प्राणी विलुप्त हो गये हैं। ये काल चक्र का ही तो परिणाम है ।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि वक़्त के आगे शक्तिशाली से शक्तिशाली राजा महाराजा सभी ने घुटने टेके हैं ।हमारे धार्मिक ग्रंथ भी इसी विचारधारा को प्रमाणित करते हैं ।उदाहरण स्वरूप राम -रावण युद्ध,कौरवों पांडवों के मध्य हुआ महाभारत का युद्ध
सभी ‘काल-चक्र ‘की प्रासंगिकता के ही तो गवाह हैं
महापंडित रावण, कंस,दुर्योधन
सभी सही समय पर उचित निर्णय न ले सकने के कारण अपार शक्ति के स्वामी होते हुये काल के गाल में समा गये
यूनान के पराक्रमी राजा को भी विवशहोकर बीच
से ही युद्ध अभियान छोड़कर
अपने देशलौटना पड़ा ।मगध सम्राट धनानंद को चंद्रगुप्त मौर्य के समक्ष पराजय स्वीकार करनी पड़ी।महान ब्रिटिश साम्राज्य के शासकों को स्वयं अपने हाथों अपने राष्ट्रीय ध्वज ‘यूनियन जैक’
को उतारकर भारत को स्वतंत्र
राष्ट्र घोषित करना पड़ा ।
सारांश में इन सभी घटनाओं से यही सिद्ध होता है कि ‘समय सर्व शक्तिमान’है ।
उसके सामने बड़े-छोटे,बच्चे बूढ़े जवान,स्त्री पुरुष हर किसी को झुकना पड़ता है । कल ,आज व कल सभी उसके ग़ुलाम हैं । भूत, भविष्य, वर्तमान सब उसका लोहा मानते हैं ।
हमें’समय’ के महत्व को समझते हुये उचित वक़्त पर निर्णय लेकर काम करने में देर नहीं करनाी चाहिये । अन्यथा काल के चक्र से हमें कोई भी नहीं बचा सकता । कबीर दास जी ने क्या ख़ूब कहा है—
काल करै सो आज कर,
आज करै सो अब,
पल में परलय होयेगी,
बहुरि करैगो कब ।
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