पापा की परी मैं
अब किसी की दुल्हन बनूँगी
क्या.. वो समझेगा मुझे
क्या.. मैं उनको समझूंगी
बाबुल की डयोढ़ी,कैसे पार करुँगी
अपने परिवार से विछोह कैसे करुँगी
यादें जो जुड़ी हैं हर एक चीज के साथ
क्या छोडूंगी यहाँ और क्या लें जाऊँगी साथ
क्या उस घर में भी, मुझे
ऐसा प्यार कोई करेगा
क्या वो घर भी मेरा
अपना ही होगा
क्या मेरे सपने, मेरे दिल के अरमान पूर होंगे
अंजान रिश्ते… मेरे दिल के करीब होंगे
मेरी जिंदगी का इक नया सफ़र शुरु होगा
कल तक था जो अजनबी
अब मेरा हमसफर होगा
वो घर भी अब मेरा इंतज़ार कर रहा होगा
मेरा अब एक…. नया परिवार होगा
क्या साथी मेरा मुझको समझेगा
नये घर में मुझको सहज होने में मदद करेगा
क्या मेरी भावनाओं की
करेगा कद्र
जैसे मेरे पापा करते हैं…. वैसी करेगा मेरी फ़िक्र
अब मेरे दो घर होंगे
कभी मेरे कदम यहाँ तो कभी वहाँ होंगे
क्या मुझे कोई रोकेगा, टोकेगा तो नहीं
अब तुम्हारा घर ये है…
वो नहीं
कैसे मैं सब को समझा पाऊँगी
अब तक की जिंदगी को ना भुला पाऊँगी
मैं तो बेटी हूँ… दोनों घर चलाऊंगी
अपने दोनों परिवारों की शान बढ़ाउंगी…. कल मैं अपने नये घर जाऊँगी
स्वरचित
रजनी सरदाना
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 0 / 5. Vote count: 0
No votes so far! Be the first to rate this post.