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रंजना बंसल।(विधा : लेख) (मानवता | सम्मान-पत्र)

नमस्कार दोस्तों ,
आपने भी महसूस तो किया ही होगा कि अक्सर चर्चा का विषय बनता है ये शब्द ‘ मानवता ‘ पर व्यवहार में नही मिलता है आसानी से । किसी गरीब को कुछ सिक्के , पुराने कपड़ों या बासी ताज़ा खाना देने । कोई दान या धार्मिक अनुशठान करने से भी आगे की प्रक्रिया , सम्वेदना या भाव है ये । घर में काम करने वाले नौकर से ,अपने से छोटों से , अनजाने लोगों से सम्मानपूर्वक बात कर लेना भी मेरी समझ से मानवता ही है । जानवरों के प्रति क्रूर ना होना , पालतू जानवर को ज़ंजीरो में जकड़ कर , पिंजरे में बंद कर अपने मनोरंजन अथवा सुरक्षा के लिए रखना क्या अमानवीय नही है ??
स्कूलों में कभी कभी शिक्षकों का बर्ताव , बुजुर्ग सास ससुर के प्रति बहु का व्यहवार , घर में शादी करके आई बहू के साथ कर्कश वार्तालाप भी क्या मानवता से परे नही हैं ??
डाक्टरों का मरीज़ों का शोषण , मंदिरों मेन दर्शन के नाम पर पंडितों की ज़बरदस्ती , पैसा कमाने के नाम पर नक़ली दवायें , मिठाई , दूध , घी , सब्ज़ी , फलों का व्यापार … कहाँ बची है ये मानवता !
शायद सुकून , शांति , संतुष्टि की तरह ये भी सिर्फ़ सोच विचार में ही रह गयी है ।
किंतु देर अभी भीनही हुई है .. सोच को , विचार को व्यवहार बनाना होगा । किताबों क़िस्सों से निकालकर रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बनाना होगा । चलो इसी होली से शुरुआत करते हैं । प्यार मोहब्बत के त्योहार पर एक दूसरे को मानवता के रंग से रंगते हैं ।
© Ranjana Bansal

ये लेख मौलिक एवें अप्रकाशित है ।

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