सुख दुःख की पटरी पर
जिंदगी की गाड़ी ऐसे ही दौड़ती भागती रहती है
कभी उठती, कभी गिरती, कभी लड़खड़ाती
बचपन, यौवन, बुढ़ापे के आयामों से गुजरती
किसी को हंसाती तो किसी को रुलाती है जिंदगी,
किसी को शह तो किसी को मात देती
कितनों के लिए याद बन जाती है जिंदगी
कभी हमजोली, कभी हमसफ़र बन जाती
तो कभी कांटों की सेज सजाती है जिंदगी
कभी छाया, कभी धूप तो कभी बरसात की झड़ी है
कभी मां का आंचल बन, संबल है जिंदगी,
कितने बिछड़े, कितने मिले इस सफर में,
जन्म से लेकर मृत्यु तक,
किसी किताब के पन्नों सी फड़फड़ाती है जिंदगी।
मुक्ता टंडन (विधा : कविता ) (चलती रहे ज़िंदगी | सम्मान पत्र)
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Very nice She has explained how our lives pass on with various emotions and activities in simple language . I liked the poem very much. Thanks to her
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