Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

मनप्रीत सरला। (विधा : कविता) (तो क्या | प्रशंसा पत्र)

तो क्या गर उठते हैं हाथ दुआ में कहीं,
तो कहीं अरदास में सर झुकता है,
तो क्या गर मानें कोई जीसस को,
तो कोई रामायण के श्ल़ोक सुनता है,
तो क्या गर मनाई जाती है बैशाखी कहीं,
तो कहीं विशु और पोंगल मनाया जाता है,
तो क्या गर रंग काया का है कहीं गोरा, काला या गेहुंआ,
होली के रंगों में तो सबको रंगाया जाता है,
तो क्या गर मिली आज़ादी सत्य-अहिंसा के दम पर,
नाम तो भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू का भी शहीदों में गिनाया जाता है,
तो क्या जो आज दूर है तू दुनिया की चकाचौंध से,
घर में रहकर अपनों का साथ और सुकून तो मिलेगा,
तो क्या आज काली रात है कोरोना की,
कल नभ में आशाओं का सूरज भी खिलेगा,
तो क्या गर थके कदम और टूटे हिम्मत कभी तुम्हारी इस युध्द में,
मत भूलना कर्मवीरों, दम पर तुम्हारें सारा हिंदुस्तान खड़ा है,
जीतेंगे और करेगें पार ये अग्निपरीक्षा संग तेरे हम ज़रूर,
अब तो जब हर इक भारतवासी, जीतने की ज़िद पे अड़ा है…
मनप्रीत

 

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

6 Comments on “मनप्रीत सरला। (विधा : कविता) (तो क्या | प्रशंसा पत्र)

Leave a Comment

×

Hello!

Click on our representatives below to chat on WhatsApp or send us an email to ubi.unitedbyink@gmail.com

× How can I help you?