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भार्गवी रविन्द्र । (विधा : कविता) (काल करे सो आज कर, आज करे सो अब | प्रशंसा पत्र)

कल एक छलावा है ……
जो लौटकर फिर नहीं आने वाला वो बीता कल है
जिसकी कोई पहचान नहीं वह आने वाला कल है
अपना सिर्फ़ आज यह पल है,बाक़ी सब भुलावा है
कोई काम कल पर न टालना , कल एक छलावा है ।

वक़्त की गरिमा को पहचानकर जीना ही ज़िंदगी है
अपने कर्म को ही अपना ईश्वर जान यही बंदगी है
अपने आज को क्यों व्यर्थ करता है कल के हवाले
इंसान वहीं खुश जो कल का काम आज कर डाले।

ज़िंदगी सफ़र है और ये दुनिया बस एक रैन बसेरा है
जब जिस पल आँख खुल जाए समझो वहीं सबेरा है
तुम आज ही पूरा करने की सोचो कल के सपनों को
बढ़कर आसमान पर आज टाँक दो कल के सपनों को।

वक़्त की जिसने कदर की वक़्त उसकी क़दर करता है
हे इंसान! क्यों कल के लिए आज घुट घुटकर मरता है
अपने पर हौसला रख कर्म करने को जुट जा जी जान से
सीप में छुपे मोतियों से आज के ये पल तू जी ले शान से।

याद रख सदा कबीर की ये बानी-काल करें सो आज कर
आज तेरे साथ समय है,ईश्वर हैं,अपने आज पर नाज़ कर
आज जो करने की सोची है उसे निबटा दे आज और अभी
कल पर टालता जाए, तो शायद फिर कर न पाएगा कभी।
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मौलिक,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित(C) भार्गवी रविन्द्र

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