कविता का नाम: मेहंदी का रंग।
बात जब बाबुल का घर छोड़ने की आयी,
नाम पिया का ले, मेहंदी उसने लगाई।
किए उसने वह सारे जतन,
जिससे मेहंदी का रंग हो ना कम।
बेपनाह प्यार ही उसकी दरकार थी,
पाने को जिसे वो बेकरार थी।
मेहंदी उसकी कुछ यूँ रंग लाई,
शुभ दिन, वह शुभ घड़ी आयी।
हो समर्पित, पहला कदम उसने बढ़ाया,
सात फेरों में सात जन्मों को समाया,
साथ पिया का सदा के लिए उसने पाया,
साथी के रूप में मिला उसे हमसाया।
बरखा कुरील
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One Comment on “बरखा कुरील। (विधा : कविता) (एक दुल्हन के सपने | प्रशंसा पत्र)”
Lovely….