जैसे भागती दुनिया की खींचे कोई लगाम
सड़कों पर गुज़र जाए दिन ,दोपहर शाम
जैसे दस मिनीट की दूरी पर घण्टों का सफ़र
बौखलाता आदमी जाए किधर
जैसे कमज़ोर कानून और वाहन हज़ार
नेताओं की रेली, है बेपरवाह सरकार
जैसे हवा में जहर और धुँए का कहर
झल्लाया आदमी सोचे जाए कैसे घर
दफ़्तर में देरी औऱ बॉस की फटकार
परीक्षा का हॉल है विद्यार्थी लाचार
जैसे छूटती रेल औऱ साक्षात्कार में फेल
अस्पताल में चलता जीने मरने का खेल
डीजल के दाम जब छुए आसमान
थम जाए पहिये हो जाए चक्का जाम
मनमाने चालान का कर दिया फरमान
अनसुनी मांग, चक्का जाम का एलान
बंद कारख़ाना हुआ मजदूर बेज़ार
अनशन पर बैठा कैसे चले घरबार
बेरोजगारी का मुद्दा औऱ आरक्षण की मार
छोड़ कामकाज युवा हालात का शिकार
नेताओं का प्रचार और बढ़ता भर्ष्टाचार
नाखुश जनता रोक रही चलती हुईं रफ्तार
सड़को पर रुके वाहन, ठप होते सारे काम
ट्रेफ़िक जाम या चक्का जाम इंसान परेशान।
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One Comment on “प्रीति पटवर्धन ( चक्का जाम प्रतियोगिता)”
Wah wah
How well said
👍🏼👍🏼