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प्रमोद सक्सेना। (विधा : लघु लेख) (दादी नानी की कहानियाँ | सम्मान पत्र)

बचपन में दादी नानी की कहानियाँ हम
बच्चों को अत्यंत ही लुभाती थी।
वे केवल मनोरंजक ही नहीं शिक्षाप्रद भी होती थीं। दादी को तो हमने देखा नहीं लेकिन नानी के साथ गहरी यादें जुडी है। हमारी नानी एक शिक्षिका थीं। प्रत्येक गर्मी में हम माँ के साथ नानी के जाते थे या कभी वोही आ जाती थीं।

दादी ने हमें किताबों की बाईडिंग, रंगबिरंगे गोटे के कागज से चटाई बनाना,नाव बनाना, हवाई जहाज बनाना और क्रेप पेपर से मालाऐं और फूल बनाना सिखाया। बडा ही आनंद आता था। नानी ने हमें तख्ती,कलम दवात से लिखना और पढना सिखाया और वह पहाडे याद कराना भुलाऐ नहीं भुलाता।

नानी के एक छोटी सी बगिया थीं उसमें उन्होंने हमें क्यारी बनाना तथा पौधे और फूल लगाना सिखाया। नानी इस बगिया में सब्जी भी उगाती थी। हमें बोना भी सिखाया।

नानी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं उन्होंने रामायण,महाभारत,भगवत् गीता की रोचक कहानियाँ भी हमें सनाई थीं। आर्य समाजी थीं तो हमें गायत्रीमंत्र का जाप और हवन करना भी सिखाया।

नानी आचार अच्छा डालती थीं। हम बच्चे औखली में मसाले कूटते और कचे आम धूप में सुखाने में मदद करते थे। कभी कभी नमक ,अमचूर, लाल मिर्च,काली मिर्च, जीरा और काला नमक आचार मसाले से कची अमिया भी खाते थे। नानी हम बच्चों को सूखे मेवे और फल खिलाती रहती थीं। दाल, सब्जी, रोटी का महत्व समझाती। नानी सिलाई भी अच्छा जानती थी।
कमीज में बटन लगाना उन्होंने ही सिखाया।

नानी और हमारा साथ चौदह साल रहा। वह पल आज सत्तर साल बाद आज भी ताजा से लगते है। हमारी जिंदगी बनाने मे हमारे माता पिता के साथ हमारी नानी का भी बडा योगदान है।
नानी जहाँ भी हो आशीर्वाद देती रहो।

प्रमोद’प्रकाश’।

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