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प्रमोद मूंधड़ा (UBI भीगी पलकें प्रतियोगिता | प्रशंसा पत्र (आलेख))

मेरे प्रिय आत्मन..
‌भीगी पलकें.. अश्रुपूरित नैन.. आंसुओं की बूंदें जो बरबस छलक जाती आंखों से.. या कभी ठहर जाती पलकों के परदे में.. कितनी कहानियां, कितनी परिस्थितियां लिए होती हैं अपने आप में। अश्रु की बूंदें.. जो टपकती हैं माता पिता की आंखों से दूर देश बसी अपनी संतान की याद में.. सागर सी प्रेम की गहराई होती है उनमें । विरह की अग्नि में तड़पते हुए प्रेमी या प्रेयसी की पलकें जब भीग भीग जाती हैं.. कितनी भावनायें छुपी हुई होती हैं उन अश्रुओं में। किसी विधवा की भीगी पलकों में.. कितने सपने.. कितनी यादें.. कितने अरमानों के आसमान.. कितने अतीत के स्वर्णिम पल.. कितनी भविष्य के अंधेरों की आशंकाएं… कितना कुछ असीम समाया होता है। या कभी किसी प्रियजन के द्वारा किये गये अनुचित व्यवहार की प्रतिक्रिया स्वरूप क्रोध के अंगार भी आंसुओं के रूप में लावा बनकर पलकों को भिगो जाते हैं।

एक और आयाम भी होता है जब पलकें भीग जाती हैं और आंसू अमृत की धार बन जाते हैं। अनायास, अप्रत्याशित कोई खुशी मिल जाती है, हृदय हर्षित हो जाता है और उस भाव के अतिरेक में अंतस आल्हादित हो जाता है.. अधरों पर अनूठी मुस्कान आ जाती है और आंखों में अमृत की बूंदें उन स्वर्णिम पलों को अविस्मरणीय बना जाती हैं। भीगी पलकों की कहानी शब्दों में कह पाना क्या संभव है ? भीगी पलकों की कहानी तो कोई प्रेमी संवेदनशील हृदय ही संभवतः समझ पाये। कहते हैं जब मीरा अपने मन के आकाश में कृष्ण को नहीं पकड़ पाती थी.. तो विरह में अश्रुओं की धारा अनवरत बहती थी.. और कभी.. जब कृष्ण के मिलन की मनोदशा में आविष्ट हो जाती थी, कृष्ण भक्ति में लीन हो जाती थी.. तो भाव के अतिरेक में अप्रयास अनायास ही आंखें झरने लगतीं थी ।

आपके जीवन में भी ऐसे अनगिनत स्वर्णिम पल आयें कि आनंद के अतिरेक में आपकी पलकें भीग जायें.. तो जरा सा उस पलों में ठहर जायें.. और वो पल आपके जीवन को धन्यता की सुवास से सुरभित कर जाये ।
आपका जीवन आनंद से आपूरित रहे.. !!

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