प्रिय आत्मन,
सुंदर भविष्य.. सुखमय संसार.. ये सपना तो प्राय: सभी का होता है। मगर मनुष्य इतना उलझ गया है, यंत्रवत हो गया है कि सुख की, आनंद की कामना तो होती है मगर आनंदित होने का समय नहीं होता। वर्तमान समय एकमात्र वास्तविकता है, वर्तमान में जीना ही आनंदित जीवन की कला है.. मगर भविष्य की कामना या चिंता की वजह से वर्तमान में ठहराव कहां हो पाता है। विडंबना ये है कि सुंदर भविष्य, स्वर्णिम संसार का सपना होने के बावजूद भी उसकी सही रूपरेखा की परिकल्पना भी हम कहां कर पाते हैं। भविष्य के सपनों में ही जीना हो.. तो कम से कम उस स्वर्णिम भविष्य की प्रतिमा तो सही तरीके से निर्मित करें। कभी बैठ जायें आराम से आंखें बंद करके और पूरी प्रगाढ़ता से लीन हो जायें सुंदर भविष्य के सपनों में। क्या क्या और कैसा होना चाहिए इसका पूरा खाका अपने मानसपटल पर बनायें और कल्पना करें कि जैसा आप चाहते हैं वैसा वास्तव में है। कल्पनाएं प्रगाढ़ हो जायें तो वास्तविकता का रूप भी ले सकती हैं। सपने भी साकार उन्हीं के होते हैं जो सपने देखते हैं। दो संभावनाएं हैं – अगर सपनों को साकार करने की दिशा में संकल्पपूर्वक प्रयास शुरू करें तो सपने साकार भी हो सकते हैं। और दूसरी – अगर पूरे लीन हो गए तो काल्पनिक ही सही मगर सुखद अनुभूति होगी, मन मुदित और तन पुलकित हो जायेगा। कुछ दिन होशपूर्वक इस प्रक्रिया को करने से आपमें आंतरिक निरीक्षण की कला विकसित होगी और आप महसूस कर पायेंगे कि आनंद के क्षणों में आपकी चेतना मस्तिष्क में एक विशेष केंद्र को स्पर्श कर रही है । आपको अपने भीतर आनंद के केंद्र की पहचान हो जाये तो फिर आप स्वेच्छा से, संकल्प से चेतना की धारा को उस केंद्र तक ले जाकर आनंद का, प्रफुल्लता का वातावरण निर्मित करने में सक्षम हो जायेंगें । और फिर जीवन में आनंद के लिए आप सपनों में उड़ान भरें या ना भरें.. आपने वर्तमान में , जैसा है उसमें ही आनंदित रहने की कला साध ली।
आपका जीवन मंगलमय आनंदमय हो ।
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