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प्रमोद मूंधड़ा।(विधा : कविता) (मानवता | सम्मान-पत्र)

~ : मनुज योनि : ~

मनुज योनि श्रेयस्कर है..कहा मुनियों ने संतों ने
बड़े पुण्यों का ये फल है..कहा सब धर्मग्रंथों ने
इसे तुम व्यर्थ मत करना.. अशुभ कर्मों से हे मानव
पुण्य को क्षीण मत करना..पतित कर्मों से हे मानव ।

सृष्टि में जीव है लाखों.. सभी में जीवन धारा है
सभी जीवों में रूपायित..प्रभु का अंश प्यारा है
मगर इंसान को मन दे.. बनाया उसने न्यारा है
बुद्धि देकर ज्ञान देकर.. मनुज जीवन संवारा है ।

पशु पक्षी में है जीवन.. पेड़ पौधों में भी जीवन
हर एक प्राणी का करना है.. तुम्हें हे मानव संरक्षण
क्षणिक से स्वाद की खातिर.. नहीं करना जीव भक्षण
अगर रक्षक बने भक्षक..करेगा कौन फिर रक्षण ।

क्षुधा पूर्ति जरूरी है.. मगर तुम ये मनन करना
जिह्वा के स्वाद की खातिर..न जीवों का हनन करना
जीव हत्या पतनकारक..पाप संचय नहीं करना
मनुज जीवन की महिमा को.. कभी खंडित नहीं करना ।

किसी को दुःख नहीं पहुंचे.. आचरण ऐसा शुभ रखना
सभी जीवों का मंगल हो.. मन में सुविचार ये रखना ।
ईशवाणी है कल्याणी.. सदा ये ध्यान में रखना
धर्मपथ पर चले जीवन..कर्मपथ ऐसा ही रखना ।

नयी पीढ़ी के बच्चों को..प्रेम से ये समझाना है
हो शाकाहार ही भोजन.. उन्हें भी ये सिखाना है

अशुभ अनुकरणों से उनको.. समय रहते बचाना है
सुसंस्कृत सुंदर जीवन का..राज सबको बताना है ।।

~~: प्रमोद मूंधड़ा :~~

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