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नरेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव ( समय प्रतियोगिता | युगान्तकारी रचना हेतू प्रशंसा पत्र )

रहे खिसकते धीरे धीरे धड़ियों के ये कांटे
इसी समय ने जीवन के पल कितने टुकड़ों मे बांटे

इसने ही भूगोल को बदला, इसने ही इतिहास रचे
इसके निर्मम आघातों से तख्त बचे न ताज बचे
इसने सब नीति विधान रचे, जब चाहा काटे छांटे

समय शेष है किसे पता है, है अनबूझ पहेली
कब कोई मृदंग बजादे,कब खेले अठखेली
कब किसका आलिंगन लेगा, कब मारेगा चांटे

कौन कहां तक साथ चलेगा, कौन कहां बिछुड़ेगा
कभी समय ने साथ दिया तो पाहन पुष्प खिलेगा
कब गूंजेगी कोई रागिनी, कब होंगे सन्नाटे

कब बगिया मे फूल खिलेंगे, कब पतझड आएगा
समय गर्भ मे निर्धारित है, पूर्व नहीं आएगा
किसको होंगे सुमन समर्पित, किसके हिस्से कांटे

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