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डॉ. श्वेता प्रकाश कुकरेजा। (विधा : लघुकथा) (हीरा है सदा के लिए | सम्मान पत्र)

जब भी अपनी उँगली पर सजी हीरे की अंगूठी को देखती हूँ उनको बहुत याद करती हूँ।वो सच कहती थी कि हीरा सदा के लिए होता है मेरे जाने के बाद भी तुम याद रखोगी मुझे।गायत्री देवी,मेरी सासूमाँ जिन्होंने मुझे यह अंगूठी दी थी।मुझे ही नहीं मेरी बेटी नूर को भी।नीली आँखों वाली,सुनहरे बाल,दूध सी गोरी नूर में जैसे उनकी जान बसती थी।जब कोई कहता कि नूर अपनी दादी जैसी दिखती है तो वे फूली न समाती।

सिंधी परिवार से होने के नाते हमारे यहाँ दीवाली पर घर के सभी आदमियों के किले रखे जाते थे पूजा में, पर उन्होंने नूर के लिए भी किला रखा।कभी उसे उबटन लगाती तो कभी बालों में तेल।हमेशा उसकी नज़र उतारती रहती।जब नूर को महावारी शुरू हुई तो मैंने उसे सुबह नहाने को मना किया।उसे जुखाम जल्दी हो जाता था और उसे दर्द भी था सो मैंने उसे कमरे में रहने को कहा।सासूमाँ ने उसे न देख आवाज़ लगाई।मैंने उन्हें बताया तो वे झट नूर के कमरे में पहुँच गयी।

“दादी ये क्या हो रहा है,मुझे बड़ा दर्द हो रहा है।”पेट पकड़े नूर बोली।
“अरे मेरी लाडो अब तू सयानी हो गयी है।चल जल्दी से नहा और बाहर आ जा।मैं सिकाई कर दूँगी।दर्द ठीक हो जाएगा।”पुचकारती हुई वे बोली।
“पर माँ ने तो मना किया है।”

“चल हट, तेरी माँ को कुछ नहीं पता।इन दिनों में लड़कियां सुबह सिर धो कर नहाती गई तभी रसोई में जा सकती है।तेरी माँ भी तो नहाती है न।हम भी नहाते थे।रीति रिवाज़ कभी नही भूलने चाहिए,ये वो हीरे है जो एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को देती है।मैं भी अपनी लाडो को दूँगी।”

मैं जब सिकाई के लिए गर्म पानी लेकर आई तब तक नूर नहा कर अपनी दादी के साथ आंगन में पहुँच चुकी थी।मुझे बड़ा बुरा लगा।तभी पापाजी आंगन में अखबार लेकर आये।

“गायत्री ये क्या नूर को हमेशा हीरा देने की बात करती रहती हो।”कुर्सी खिसकाते हुए वे बोले।
“इसलिए क्योंकि हीरा सदा के लिए होता है।और मैं अपनी लाडो के साथ सदा के लिए रहूंगी,मरने के बाद भी।”नूर के बाल पोछते हुए वे बोली।

“पर आपका प्यार,आपका आशीर्वाद ,आपकी सीख इसके लिए हीरे है जो सदा इसके साथ रहेगी।आपको याद है जब आपको सुबह नहाना होता था तब कितनी तकलीफ होती थी।बहुओं ने आपका मान रखा, कम से कम अपनी लाडो के लिए तो रिवाज़ों को बदलिए।जिन रिवाज़ों से तकलीफ हो उन्हें बदल देना चाहिए।अपनों के दिल में जगह बनाइये गायत्री, आप हमेशा उनके साथ रहेंगी।”
सासूमाँ चुप रही शायद पापाजी की बात सही लगी उन्हें कि तभी नूर तपाक से बोली, “दादी तो क्या अब आप मुझे हीरा नहीं दोगी?”
उसकी मासूमियत पर सब खिलखिला उठे और सासूमाँ बोली, “अरे तू तो मेरा कोहिनूर है, ज़रूर दूँगी हीरा तुझे भी और तेरी माँ को भी।” मुझे देखते हुए वो बोली।

पापाजी ने बड़ी सहजता से सासूमाँ को कोयले से कोहिनूर बना दिया था।

©डॉ. श्वेता प्रकाश कुकरेजा

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