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डॉ आराधना सिंह बुंदेला। (विधा : कविता) (काला धब्बा | सम्मान पत्र)

दाग ना लगने देना , कभी भी दाग ना लगने देना ,
काला धब्बा , आचरण से दूर ही रहने देना ।
काम बहुत मुश्किल सा है,पर कोशिश करते रहना ,
उजला जीवन जीना है तो , संभल के चलते रहना ।

बड़ी कठिन ये राह है बेटा, काँटे बहुत मिलेंगे ,
भटकाने वाले सही लगेंगे,पर राह सही तुम चुनना।
कोई कहेगा मैं अच्छा हूँ , मेरी ही बात पर चलना ,
पर तुम अंतर्मन की आँखों से, देख के आगे बढ़ना।

राम सदा ही पुरुषोत्तम थे, मर्यादा के स्वामी थे ,
माँ की आज्ञा पर ,सारा राजसिंघासन था छोड़ा ,
सीता माँ को छुड़ा कर ,रावण का गर्व था तोड़ा ,
काला धब्बा लगा,जब जानकी को त्याग मुख मोड़ा ।

कान्हा की थी काली करतूतें, ग्वालिनों को सताया था ,
वस्त्र हरण कर , गोपियों को खूब तरसाया था ,
काली काली मोटी आँखों में, सबका मन छुपाया था ,
वो इतना मोहक श्यामल था, कि काला धब्बा कभी भी लग ना पाया था ।

प्रभु राह सही मैं चलता जाऊँ, इतनी करो तरकीब ,
काल कोठरी इस दुनिया में ,तुमसे रहूँ क़रीब ,
एक उजाला बन कर तुम , सदा देना मुझे उम्मीद ,
काले धब्बों से दूर ही रखना , बनना मेरे रक़ीब ।

@डॉ आराधना सिंह बुंदेला

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