वादियों में इश्क़ की गूँज हम मचाते रहे
बर्फीली शामें और भी हसीन बनाते रहे
चारों ओर बिछी सफ़ेद चादर को देख कर
प्रकृति के सुहाने मंज़र का मज़ा उठाते रहे
वादियों में इश्क़ की गूँज…………
उल्फ़त की राह में प्यार के नगमें गा कर
इश्क़ के केसर से राहों को महकाते रहे
वादियों में इश्क़ की गूँज…………
मोहब्बत की तपिश का अलाव ताप कर
बर्फ के कुछ कतरे हर शाम पिघलाते रहे
वादियों में इश्क़ की गूँज…………
रोज़ शाम सर्द हवाओं को होले से छू कर
फ़िज़ा में प्यार की गर्मी पल पल फैलाते रहे
वादियों में इश्क़ की गूँज…………
अर्श से गिरे बर्फ के फोहों को समेट कर
सफ़ेद पैराहन पहनकर रूह को रिझाते रहे
वादियों में इश्क़ की गूँज…………
फ़लक से ख़ुदा हमारे मिलन को देख कर
हम पर रहमत की बारिश रोज़ बरसाते रहे
वादियों में इश्क़ की गूँज…………
डा॰ अपर्णा प्रधान
डा॰ अपर्णा प्रधान। (विधा : गीत) (बर्फीली शामें | प्रशंसा पत्र)
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