झर झर गिरती धाराओ का
इस धरती पर क्या काम
सर सर दौड़ती इन नदियों को
कण-कण देता भिगा सलाम
हैं कौन यह बावली जो
भागी भागी जाय
न्योछावर कर सब कूछ अपना
जो सागर मे मिल जाय
सागर से उठ कर यह बूँदें
अंबर मे बस जाय
बादलो के रथ मे चढकर
आसमां आसमां घूम आये
ओतप्रोत से काले बादल
जल भार भर मूसकाए
सूखी रूठी प्यासी धरती
कृष्ण बादल को बुलाए
चलता रहता यह खेल
सदियो से चलेगा सदियों तक
पानीयो की गागर उड़ेल
आसमां रोयेगा देर तलक।