प्रकृति के दानव
मत काटो मुझे मैं हूँ जिन्दगी तुम्हारी
जो दोगे जीवन मुझे ,बनूंगी जीवनदान तुम्हारी
हाँ मैं हरयाली हूँ
करती तुम सबकी रखवाली हूँ
सच्चा साथी सच्ची हमसफर मैं ही तो हूँ तुम्हारी
फिर क्या खता हुई मुझसे जो कर रहे हो यूं ,
मेरे अस्तित्व को नष्ट
चला के कुल्हाड़ी पे कुल्हाड़ी पहुंचा रहे हो तुम मुझको कितना कष्ट
ये बागबान ये कलियाँ ये गुलसितां मुझसे है
ये हवा ये फिजा ये दुनिया मुझसे है
तुम्हारी खूबसूरती इसी मे है कि तुम बने रहो मानव
अपने ही हाथों हो जाओगे तबाह ,जो बन बैठे तुम प्रकृति के दानव।
कल्पना शर्मा (UBI पर्यावरण दिवस प्रतियोगिता | प्रशंसा पत्र)
547
बहुत उम्दा रचना
💐👏👏Congratulations Green Ambassador!!…..