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अरुणा अभय शर्मा। ( समय प्रतियोगिता | युगान्तकारी रचना हेतू प्रशंसा पत्र )

“अरे!!फिर लड़की!!समय ठीक नहीं चल रहा,कहे थे तुमसे पुत्र प्राप्ति के लिए अनुष्ठान करवा लो,पर हम तो मूरख हैं।”कहते-कहते माई भीतर चली गई।नारायण दुःखी हुए बिना आगे की सोचने लगा।

आज वो उचित समय आ गया,जब सुनयना बच्ची को लेकर पीहर से वापस आ रही थी।नारायण भी अपना निर्णय सबको बताने को तैयार था। अधिक पढ़ा-लिखा नहीं है वह क्योंकि स्कूली शिक्षा पूर्ण होते ही उसे अपनी आगे की पढ़ाई का ना तो वक्त मिला था और न ही अनुमति।पिताजी की बीमारी के चलते माई ने साफ़ कह दिया था कि वो गाँव, खेत छोड़कर नहीं जाएगा और इसी कारण विवाह भी 21 का होते ही करा दिया,ताकि पिताजी पोते का मुँह देख सके।लम्बी बीमारी के चलते पिताजी उसके पहले बच्चे के जन्म से पहले ही चल बसे।माई ने पहली लड़की को तो स्वीकार कर लिया था,उसके दादा की मर्ज़ी समझ।लेकिन इस बार फिर से लड़की का जन्म होना सह नहीं पाई थी और चुपके-चुपके बेटे के दूजे ब्याह के बारे में तैयारियां करने लगी थी।पर समय-चक्र किस ओर घूमेगा,ये किसी को नहीं मालूम था।

ख़ैर,अब समय था नारायण के फ़ैसला सुनाने का। सुनयना भी पढ़ाई की इच्छुक व खुले विचारों की लड़की थी,मगर अपने परिवार की सोच के चलते वो सुनयना को आगे की पढ़ाई नहीं करवा पा रहा था।पर अब,नारायण अपने भविष्य को लेकर एक स्पष्ट सोच के साथ खड़ा था, सबके सामने।माई और दोनों भाई आँगन में आ खड़े हुए।आज तो उनके पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गई जब नारायण ने बताया कि वो अपना ऑपरेशन करा कर आ गया है,ताकि न अगली बार बच्चा होगा ना ही लड़का-लड़की का कोई झगड़ा।साथ ही उसने शहर जाने का अपना निर्णय भी बता दिया सबको।अपनी बेटी को गोद में उठाये वो भीतर गया और मन्दिर में बिटिया को दर्शन करा,सुनयना से बोला-”अरे,सुन्नु!!आज ही शहर निकलना है।हमारी बेटियों के भविष्य को संवारने के लिए आज ही शुभ समय है,जल्दी-जल्दी तैयारी करो।ना जाने कलतक समय कोई नई करवट ले ले।”

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