सुनो! सुधा, आज हमारी पार्टी के प्रजा वत्सल और कर्मठ नेता जी हमारे शहर में आ रहे हैं । बहुत बड़ी रैली है, मुझे भी समय पर पहुंचना है। पार्टी वालों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है उनके स्वागत में ।
अरे ,,,,बस !!बस!!,,,, रोहित क्या हो गया है तुम्हें ? और भी बहुत लोग हैं, संभाल लेंगे। तुम अपनी तबीयत का ध्यान रखो । डॉक्टर ने कहा है तुम्हें ज्यादा स्ट्रेस नहीं लेना है।ओफ्फोह,,!!
तुम भी ना, सब ठीक है और यह छोटे-मोटे सीने के दर्द तो आजकल जवानों को भी होते हैं । फिर भी प्लीज़, इतनी दौड़ भाग मत करो ।
अच्छा ठीक है मैं निकलता हूं , कब तक आऊंगा कुछ कह नहीं सकता ।
कहते-कहते रोहित जैसे ही मुख्य द्वार की ओर जाने लगा अचानक आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। सुधा.,,,, सुधा,,, कहते-कहते रोहित सीने पर हाथ रख कर गिर पड़ा।
कुछ होश संभाला तो खुद को सुधा के साथ एंबुलेंस में पाया। फिर बेहोशी और बाहर रैली का शोर !!
“हमारा नेता कैसा हो”
” रामकिशन जी जैसा हो “
एंबुलेंस की आवाज शायद उनकी आवाज में दब रही थी ।
भैया जल्दी करो सुधा रूंधे गले से बोली।
देखिए, बहन जी! कितनी बड़ी रैली है और कितनी गाड़ियां खड़ी है। इतनी कोशिशों के बाद भी सड़क खाली नहीं हो पा रही है।
रोहित!!!,,, रोहित!!! उठो !! प्लीज,, उठो !! देखो, रोहित नहीं ,,,,नहीं,,,, रोहित, आंखें खोलो रोहित।
सुधा का करुण क्रंदन चीत्कार में बदल चुका था और वह आंसुओं से भरी आंखों से रोहित के प्रजा वत्सल नेता जी की रैली को निहार रही थी उस पर इस चक्का जाम ने एक आम और मासूम की जिंदगी लील ली थी। स्वरचित
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 0 / 5. Vote count: 0
No votes so far! Be the first to rate this post.