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अनामिका जोशी। (विधा : कविता) (दर्द की दास्तान | प्रशंसा पत्र)

मां तेरी झोली में आई
नन्ही गुड़िया प्यारी
सबकी आंखों का तारा और
बनी थी राजदुलारी
नन्हे कदमों से घर के
हर कोने को छनकाती थी
उसकी चहल-पहल से घर की
महक रही फुलवारी थी
पढ़ी लिखी और नाम बनाया
सर्वत्र सफलता का मुकाम पाया
था ऐसा कोई क्षेत्र नहीं
जहां परचम नहीं फहराया था
पंख लगे थे समय की गति को
बारी विदाई की आई थी
डोली उठी और सूना आंगन
नम आंखें सबने पाई थी
परिवार समझता रहा स्वयं को
एक फर्ज से मुक्त हुआ
पर न कभी सोचा जैसा था
सौभाग्य था उसका सुप्त हुआ
लोभी दानव ने लूटा था
विश्वास और भोलेपन को
कुत्सित जो कृत्य सहा उसने
समझा न सके अपने मन को
मानव तो छोड़ो न्याय स्वयं
कैसा संवेदन शून्य हुआ
हे ईश्वर उस आसुरी सम्मुख
तो क्यों न तू आकर खड़ा हुआ
या तो लौटा दे बेटी मेरी
या बेटी बिना संसार चला
सुनकर मां की दर्द की दास्तान
हर मानव रह गया हिला
(स्वरचित)अनामिका जोशी “आस्था

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