कवि एक योद्धा – शालीन सिंह
कवि एक योद्धा है जो नही लड़ने को उत्सुक है हाथ पैरों की लड़ाई पर रोक नही सकता मन को प्रतिकार करने से वो शब्दों
कवि एक योद्धा है जो नही लड़ने को उत्सुक है हाथ पैरों की लड़ाई पर रोक नही सकता मन को प्रतिकार करने से वो शब्दों
मेरे अंदर ही था जवाब हर सवाल काबस ढूंढने में देर कर दी। कुछ दूर दिख रही इस रोशनी तक पहुंचने में,हमने ज़िंदगी अंधेर कर
जब नया साल आता हैं नई उम्मीदे नई तरंगे कुछ हसीन ख्वाब संग लाता हैं… पल पल ये गुजरता हैं और कुछ मीठे तो कुछ
एक हद होती है, किसी इल्तिज़ा की, हर बार, गिड़गिड़ाया भी, नही जाता। बुत सा चुप रहना, कैसी है सियासत, मन्नत बेअसर, अब कोई नही
नैया है सबकी, सब हैं खिवैया ज़िम्मेदारी सबकी, सब हैं मुखिया यार नहीं होते तो पतवार नहीं होती पतवार नहीं होती तो मँझधार ले डूबोते
ग़ज़ल ( आदत न रखे ) जवानी से उलझने की, नीयत न रखे। दख़लंदाज़ी करने की, जुअरत न रखे ।। ऐसे दौर से गुज़रना अनहोनी
हमने हवाओं का रुख बदल दिया है, शुष्क हवाओं में नमी को भर दिया है, रमजान की अदानों के जरिए, रुहानी महक को भर दिया
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