प्रकृति
# यूबीआई # on-line contest #1 प्रकृति *** प्रकृति अपने आप अनुपमा अनन्या है छटा उसकी निराला बारह महीने में तेरह पहनावा पहन के लगती
# यूबीआई # on-line contest #1 प्रकृति *** प्रकृति अपने आप अनुपमा अनन्या है छटा उसकी निराला बारह महीने में तेरह पहनावा पहन के लगती
# यूबीआई # on line contest # कविता ४ # ४ कविता : भरोसा ***** तु चल बसा दिलासा दिए मैं रह गई भरोसा समेटे
For years, He wore an outfit, Made with innocence. Then he learned to tailor. And made his own outfit With innocence, honesty, sincerity And other
कल रात चाँद खुद खिड़की में आकर कुछ यूँ मुस्कुराया, उसे देख मेरा महबूब भी था शर्माया, बस उसकी इसी अदा पर हम फिर एक
यह मेरे द्वारा लिखी गई यह कविता आज के युवाओं को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देता है। इसमें स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने पर भी
खुद को बलिहारी करके धीर-धीरे नज़रों को उठा तुम्हें देखा है। अपनी हस्ती को नगण्य मान समस्त स्वरूपी तुम्हें देखा है। है धीमी अपनी चाल
Orphans. Buds of situations. Breath with many salutations. Reside in humane hearts without any identifications. Heartless brutally nails us. In the name of help rule
कभी था एहसास कि अटूट पत्ता हूँ उस वृक्ष का सत्य के ज्ञान का समय शायद मेरी उम्र से भी कम था। काट दी गई
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