क्यों एकांतवास – रोहन कोठारी
वैसे तो सभी के साथ है, जीवन के अनुभवों का प्रवास, मगर जब जानना हो खुद को, तो करना चाहिए एकांतवास. एक ऐसा आइना जिसमें,
वैसे तो सभी के साथ है, जीवन के अनुभवों का प्रवास, मगर जब जानना हो खुद को, तो करना चाहिए एकांतवास. एक ऐसा आइना जिसमें,
कहीं बैठा था मैं अपने स्वप्न-मित्रों के साथ और लगा तभी मुझे कि एक हवा के झोकें से कुछ विचलित सा हो गया हूँ मैं
कभी सुनी है तुमने तन्हाई की आवाज़बैठे थे जो साथ, हम तुम कभीहाथों में हांथ भी था, और महसूस किया थाहृदय-भावों का निर्मल चुम्बन।किंचित आँखों
जहाँ जाने के बाद वापस आने का मन ना करे जितना भी घूम लो वहाँ पर कभी मन ना भरे हरियाली, व स्वच्छ हवा भरमार
फिर इक नयी उम्मीद, फिर इक नयी चाहत फिर इक नया सवेरा आ चल कर लें ख्वाहिशें पूरी कि जब तक साथ है तेरा और
हम चाहने वाले पशु हैं हम जो होता है उसे ही चाहते है बाद में उसके होने का शोक मनाते हैं बाद में जो नहीं
बड़े अजीब है लोग सांप से लहराते हुए चलने वाले बात बात पर बात बदल बदल के बोलने वाले लोगों के लिए आप महज़ पीकदान
आज भी देखा है मैंने पिता को शाम को कंडिया लेकर शनिवार के रोज़ कट्टे के थैले में हमारे लिए खिलौने लाते हुए पहले छुपाते
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