प्रीति पटवर्धन ( चक्का जाम प्रतियोगिता)
जैसे भागती दुनिया की खींचे कोई लगाम सड़कों पर गुज़र जाए दिन ,दोपहर शाम जैसे दस मिनीट की दूरी पर घण्टों का सफ़र बौखलाता आदमी
जैसे भागती दुनिया की खींचे कोई लगाम सड़कों पर गुज़र जाए दिन ,दोपहर शाम जैसे दस मिनीट की दूरी पर घण्टों का सफ़र बौखलाता आदमी
वर्षों के अथक परिश्रम का, आज परिणाम आया था । पढ़ा जब समाचार-पत्र, नौकरी में चयन पाया था । बांछें खिल गई जब, साक्षात्कार का
हमारे देश के संविधान ने हम नागरिकों को कुछ अधिकार दिए है उनमें से प्रमुख हमारे मौलिक अधिकार है जिनको प्राप्त करना हमारा जन्म सिद्ध
इतिहास है गवा, घीसता घसीटता जीवन कैसे आसान बनगया! रुहानी तड़प हलफ़ से कैसे सुहानी बनगया! असभ्यता कैसे भव्य सभ्य बन गया! फ़िर अचानक चक्का
भोलू आज बहुत खुश था, ओर खुस हो भी क्यों ना, पूरे एक साल बाद मुम्बई से कानपुर जो लोट रहा था,,,, कुछ समय पहले
आज फिर से वही ट्रैफ़िक जाम जब भी निकलती घर के बाहर पाती ट्रैफ़िक जाम सड़क पर, लाल,नीली, पीली हरी, काली सफेद, गाड़ियों की लंबी
हो हल्ला कोहराम मचा है फिर घंटों से जाम लगा है । नाजायज कब्जे हैं जारी आहत जनता है बेचारी । तिल भर रखने जगह
क्या है यह चक्का जाम? क्यों होता है चक्का जाम? क्यों रुकतीं है जिंदगी की रफ़्तार? चक्र चाहे गाड़ी का हो, या हो यह जिंदगी
सबकी ज़ुबाँ पर है चर्चा आम जब से हुआ है चक्का जाम क्या होगा अब हाल ? बुरे फँसे- सब हुये बेहाल रेलवे क्रासिंग तो
पहिए सारे रुक गए चौक चौराहे जाम हुए हैं मोटर की भीड़ लगी है रिक्शेवाले बदनाम हुए हैं पहिए सारे रुक गए चौक चौराहे जाम
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