अनामिका जोशी (2) ( समय प्रतियोगिता | युगान्तकारी रचना हेतू प्रशंसा पत्र )
सुधा जी! आज एक नए वृद्ध जोड़े का नामांकन हुआ है ,आप ही के शहर से हैं। ठीक है! तुम पुस्तिका में औपचारिकताएं पूर्ण करो,
सुधा जी! आज एक नए वृद्ध जोड़े का नामांकन हुआ है ,आप ही के शहर से हैं। ठीक है! तुम पुस्तिका में औपचारिकताएं पूर्ण करो,
रात सरकता शिशु रवि और, दिन में तपता भास्कर सांझ चमकते तारे हैं और रात रानी मेहताब है बस यहां समय का राज है मर्यादा
मैं आज से कल की स्मृतियाँ पिरो कर जोड़ता हूँ मैं समय हूँ ….मैं दिशायें मोड़ता हूँ चलता जाता हूँ अविरत , न रुकता हूँ
“समय”, तो गुज़रता है , गुज़रता ही चला जाएगा , अपनी ही रफ़्तार से, निरंतर यह बढ़ता जाएगा। “समय” की दहलीज पर ,ठहरा हुआ है
समय समय पर समय को सब अपना बना लेते है। अपना बताते हैं, अपना बताने से नहीं एतरातें हैं। सच में क्या समय अपना है!
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