रीता बधवार (2) ( समय प्रतियोगिता | युगान्तकारी रचना हेतू प्रशंसा पत्र )
हमने हमेशा अपने बड़े बुज़ुर्गों के मुँह से अक्सर यह वाक्य सुना है,’समय बड़ा बलवान’ । बचपन में हमें इस पेचीदा सवाल का कोई भी
हमने हमेशा अपने बड़े बुज़ुर्गों के मुँह से अक्सर यह वाक्य सुना है,’समय बड़ा बलवान’ । बचपन में हमें इस पेचीदा सवाल का कोई भी
घड़ी की सूइयोंपर चलता आज का जीवन कुछ यांत्रिक सा लगता है, तसल्ली के दो क्षण मिलना भी मुश्किल सा लगता है, जिंदगी की जद्दोजहद
रहे खिसकते धीरे धीरे धड़ियों के ये कांटे इसी समय ने जीवन के पल कितने टुकड़ों मे बांटे इसने ही भूगोल को बदला, इसने ही
सुना था वक़्त होता है मरहम भर देता वो सारे ज़ख्म कुरेद कर देखा जो इक ज़ख़्मी मन घाव हरा था अन्तर्मन वक़्त ने जहां
कौन जी सका वक़्त के मुताबिक ये जहान हसरतें कब सबकी पूरी हुई यहां वक़्त ने बदली सबकी दिशा वक़्त के आगे बेबस हुआ हर
मैंने .. हर रोज .. जमाने को .. रंग बदलते देखा है …. उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है ..
‘समय’है सर्व शक्तिमान, नहीं है विश्व में कोई इतना बलवान वक़्त है दिखाता सबको आईना, जिसमें झलकता रूप उसका शुद्ध सोना, वक़्त की ताक़त को
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