श्याम सुंदर शर्मा ( समय प्रतियोगिता | युगान्तकारी रचना हेतू प्रशंसा पत्र )
उत्तुंग समय मीनार खड़ी, सदियों से समय दर्शाती है। महत्ता समय की जीवन में जन जन को समझाती है। भले ना देखा किसी ने इसे,
उत्तुंग समय मीनार खड़ी, सदियों से समय दर्शाती है। महत्ता समय की जीवन में जन जन को समझाती है। भले ना देखा किसी ने इसे,
दिन हफ़्ते महीनें साल कुछ यूँ गुजार दिए समय की बहती धारा में बरसों निसार किए खुद की बनाते पहचान दिन रात किए बेहाल तारीखों
समय मेहरबान तो जहां निगेहबान समय की महिमा अपरंपार, इससे कोई भी पार नहीं पा सकता।इसकी शक्ति,इसकी महिमा को कोई नकार भी नहीं सकता। अनंत
वक्त के मारे सभी, वक्त के शागिर्द भी वक्त ही उस्ताद है, वक्त के सहारे सभी जो वक्त चलता ही रहे, इंसान फिसलता नहीं वक्त
“अरे!!फिर लड़की!!समय ठीक नहीं चल रहा,कहे थे तुमसे पुत्र प्राप्ति के लिए अनुष्ठान करवा लो,पर हम तो मूरख हैं।”कहते-कहते माई भीतर चली गई।नारायण दुःखी हुए
फ़कीरे की कलम से , “मैं” मेरा गुरूर और वक़्त “मैं” के घोड़े पे सवार , ज़िद्द थी मेरी, लिखूंगा हर पन्ना अपनी तकदीर का,
पल पल उड़ रहा है वक़्त तिनके की तरह सराह ढूंढ रहा हो जैसे परिंदे की तरह।। ओझल होता लम्हा कराह रहा है “गले लगा
सुनो!! घड़ी की टिक-टिक क्या कहती? मैं समय हूं–सर्वशक्तिमान– भूत, भविष्य और वर्तमान मेरे अलग-अलग रूप मेरी यही पहचान। मैं अनादि मैं अनंत मैं ही
समय ने कब सोचा क्या गुज़रती है उसके गुज़र जाने के बाद ************************************************* बहुत देर तक ठहरा रहा ‘वो ‘ * मेरी दहलीज़ पे कुछ
उठो चांदनी । बहुत देर हो गई फिर हमें शहर भी जाना है । तेरी आगे की पढ़ाई के लिए किसी अच्छे कॉलेज का पता
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