सरिता तिवाडी (पारीक ) ( जलती वसुंधरा प्रतियोगिता | सम्मान पत्र )
आज पुकारे ये धरती माँ हे मानुष ! तू क्यों चुप खड़ा जल रही है जग जननी तू क्यूँ निज स्वार्थ पर अड़ा.. कभी पेड़ो
आज पुकारे ये धरती माँ हे मानुष ! तू क्यों चुप खड़ा जल रही है जग जननी तू क्यूँ निज स्वार्थ पर अड़ा.. कभी पेड़ो
हरी भरी इस सुंदर धरा पर, कब और कैसे यह वज्र गिरा। क्यूँ पड़ गया वज़ूद खतरे में, ऐसा भी क्या गलत हुआ। झुलसा रहा
Greenery is my poetry I am satisfied and have you in my lap with my Geometry I am holy Mother. Dear all,You know Mother child
जलता है तन,जलती है वदन। चिंगारी है घृणा की,सुलगता है हर अंतर्मन। जलते हैं सूर्य,तारें, गर्दिश के अनगिनत नयन। जलती है बसुंधरा,ज़हर फ़ैलाता है अशुद्ध
हे भगवान ! कैसा ये रंगमंच बिछाया है? सूर्य आज विडम्बना बनकर छाया है। ताकत, ऊष्मा, रोशनी, ऊर्जा देने वाला, वनमण्डल पर प्रकोप सा नज़र
‘जलती वसुंधरा’ के इस भयावह दृश्य को देखकर अनायास ही’घर फूँक तमाशा देखने’ की याद आ जाती है आज चारों अोर हाहाकार मचा हुआ है।सभी
क्या सोचा था तुमने जब काट वृक्ष इतराये थे जड़ को निकाल फेंक आये और पथरीली इमारत बनाये थे शहरीकरण के अहंकार से हजारों जंगल
Fire Burning! Inferno, stir, wake To raging, combustion quake Flames a blaring With red lights a flashing To find the seat of the blaze glowing
The dawn of life on land, The human race, grand. The ability to think, Brings us to a greedy brink. Human induced climate change, Disastrous
जिस धरती माँ की गोद में जन्मा, क्यों भूल गया उसका सम्मान , वसुधा झुलस – झुलसकर बोले, अब तो बस कर दे इंसान ।
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