कमला मूलानी। (विधा : कविता) (सुनहरी छतरी | सम्मान पत्र)
सुनहरे भविष्य की सुनहरी छतरी सिर पर सोहे जैसे रंगीन पगड़ी नित नूतन सपने ये है सजाती दूर जो मंजिल उसे पास ले आती सपने
सुनहरे भविष्य की सुनहरी छतरी सिर पर सोहे जैसे रंगीन पगड़ी नित नूतन सपने ये है सजाती दूर जो मंजिल उसे पास ले आती सपने
People love,respect, go out of the way not because of will , but not to risk anything in the will. Indu Nandal Germany
माँ की वसीयत खोलो जब मेरी वसीयत ह्रदय की आँखों से लेना बाँच, तुम ही रहे हो मेरे जीवन के सवेरे और साँझ। वसीयत में रखे पैसे नहीं हैं सिर्फ़ काग़ज़ के टुकड़े, हैं ये तिनके जिन्हें जोड़ बनाए हमने प्रेम के घरौंदे। जब देखो वसीयत में मिला घर आलीशान, रख लेना माँ का मान । सत्य- प्रेम -आदर का रखना उसमें वास, है बेटा तुमसे बस इतनी सी आस । न गिनना कभी भी घर की मंज़िलें , गिन लेना उनमें लगे थे जो मेले। घर की नींव में भरा है तुम्हारे लिए अपार प्यार, लेना भरपूर ,जब भी बेटा तुम कभी पड़ो अकेले। है वास्तविक वसीयत में हीरे जवाहरात का होना , पर याद रखना तुम ही हो हमारा खरा सोना । नहीं रही चाहत कभी भी मिले मुझे करोड़ों का हीरा , तेरे हाथों के हार ने बनाया हमारा हर पल सुनहरा। बड़े से घर में हमारे लिए छोटा सा इक कोना रखना, जहाँ हर दिन मेरे संग हँसना जारी रखना। बनाई है मैंने बंगले की खिड़कियाँ बहुत बड़ी, ताकि प्रकृति व प्रभु से तुम्हारी कड़ी रहे जुड़ी। खिंची है द्वार पर संस्कार रूपी लक्ष्मण रेखा , चलेगा ग़र तू संभल न खाएगा कभी धोखा। अंत में लिखती है तेरी माँ बेटा ये नसीहत , प्यार को हमारे समझना सबसे बड़ी वसीयत।
दुःख सुख की कहानी,वसीयत की ज़ुबानी।मैंने मानी तुमने मानी, क्या यह एक नादानी? वसीयत लिख दूँ एक ही नसीहत पे, प्यार है, प्यार उड़ेल दिया काग़ज़ में नियत से। क्या क्या बचाया है ज़िंदगी के पन्नों ने, दिल और जिगर का हिसाब इन दोनो में। कोख मेरी प्यारी जिसमें जान थी वारी, लहू से सींचा प्यार,जन्नत देखी आँखों में सारी। वसीयत नहीं है काग़ज़ के पन्नों की मोहताज, दिल है बस्ती कतरे कतरे में बसा कल और आज। वसीयत काग़ज़ का पुर्ज़ा बन जाता ख़ास, जब दुआ वं ख़ुदा मिल जाएँ पास पास। चंद अल्फ़ाज़ों की वसीयत जला देना साथ ग़र दिख जाए ईर्षा, स्वार्थ,द्वेष और क्रोध की दीवार॥ दुःख सुख की कहानी,वसीयत की ज़ुबानी।मैंने मानी तुमने मानी, क्या यह एक नादानी? स्व-रचित “सपना अरोरा”
Of Pranks and Laughter April the first is a prankster’s day, On the platter are jokes, laughs and even some foulplay. In England the gob
One hope survives amidst scattered dint of scars, peace is not far, Ray of hope in the midst of war.
Never lose, never to cry No looking back, not even a sigh. Journey that started with you, ended leaving me estranged; Untrue promises, shattering me
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