निशा टंडन। (विधा : कविता) (मेरा पहला प्यार | प्रशंसा पत्र)
दिलबर की याद में लिखी थी जो मैंने दिल की हर बात ग़म और ख़ुशी में जब ज़ाहिर हुए थे दिल के कुछ जज़्बात हाँ
दिलबर की याद में लिखी थी जो मैंने दिल की हर बात ग़म और ख़ुशी में जब ज़ाहिर हुए थे दिल के कुछ जज़्बात हाँ
ऐशट्रे के मुहाने पर, बस एक कश लगी तिल तिल सुलगती सिगरेट सा हेडलाइन पर सरसरी नजर डाल बिखरे छोड़ दिए गए बासी होते अखबार
प्यार , मोहब्बत, इश्क़ , ये महज एक अल्फाज़ थे .. मगर जब तुमसे मिले तो जाना , पहले प्यार के क्या मायने थे ।
आगरा जंक्शन से मैंने ट्रैन पकड़ी तो देखा सामने वाली सीट पर एक उम्रदराज दंपति बैठे थे।उनकी नोंकझोंक सुन बड़ा मज़ा आ रहा था। “सुंदर
पूरा स्टेडियम लोगों से भरा है।तेज लाईट और तालियों की गड़गडाहट गूंज रही है,पर मेरे हाथ पैर कांप रहे हैं ठण्डे से हो रहे हैं
वो पहला प्यार मुझको तो, बहुत ही याद आता है, सनम तुझसे नजाने क्यूँ, अजब सा एक नाता है ! ठिठुरती सर्द रातों में, कईं
आए मेरा पहला प्यार बन कर, खूबसूरत एहसास बन गए उमंग भरी हसीं सौग़ात बन कर, तुम बहुत ख़ास बन गए मोहब्बत का आग़ाज़ कर
उनसे नज़रें क्या मिली , जैसे प्यार की इजाज़त मिल गई , सुध-बुध खो बैठी , लगा, जन्नत मुझे मिल गई । पंख लग गए
मेरा पहला प्यार, जैसे छाई ,हर ओर बहार , एक दिन अचानक ही मिला,ख़त्म हुआ इंतज़ार । अनदेखा, अनजाना और धुँधला सा एक सपना ,
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