शशि कांत श्रीवास्तव (विधा : कविता) (न्याय | सम्मान पत्र)
नमन देश के न्याय प्रणाली को नमन देश के कठोर कानून को नमन कानून की देवी को –जो लिये रहती है हमेशा तराजू न्याय का
नमन देश के न्याय प्रणाली को नमन देश के कठोर कानून को नमन कानून की देवी को –जो लिये रहती है हमेशा तराजू न्याय का
न्याय की देवी को कभी न इतना लाचार देखा आँखों पर बाँध पट्टी उसने सिर्फ अंधकार देखा उसकी तराज़ू में तुलता गुण -अवगुण काँटे
न्याय शब्द का ज़िक्र होते ही मन में उचित,अनुचित का विवेक फ़ैसला,इंसाफ़ आदि बातों का ख़याल अनायास ही आ जाता है। हर समाज व देश
शीर्षक : मनुवाद बनाम न्याय प्रक्रिया और आरोप… यदि, वेदों पर आधारित मूल मनुस्मृति का अवलोकन करने पर हम पाएंगे कि आज मनुवाद का
न्याय ना कोई कोर्ट, ना कोई कचहरी, ना न्याय की देवी के सामने शपथ लेनी पड़ी यह कैसा न्याय है जिसे सुनकर आज डॉक्टर सुवर्णा
रोहित!! रोहित!!! “क्या हुआ?? इतनी घबराई हुई क्यों हो ?” रोहित, देखो!! क्या हो गया !! अरे ? इतनी भद्दी तस्वीरों में तुम !!! नहीं!!
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