शीतल प्रधान देशपांडे। (विधा : लघुकथा) (एक दुल्हन के सपने | प्रशंसा पत्र)
सिमरन अपने आप को आईने में निहार रही थी..आज तो बहुत खूबसूरत लग रही थी वो। सच में,कितना खुश होगा राजेश उसे देखकर!मन ही मन
सिमरन अपने आप को आईने में निहार रही थी..आज तो बहुत खूबसूरत लग रही थी वो। सच में,कितना खुश होगा राजेश उसे देखकर!मन ही मन
नववधू बनकर खड़ी हूं आज नए आंगन में जाने कैसी उथल पुथल मची है मन में जानती हूं मीन मेख भरी नजरें मुझे परखेगी और
कविता का नाम: मेहंदी का रंग। बात जब बाबुल का घर छोड़ने की आयी, नाम पिया का ले, मेहंदी उसने लगाई। किए उसने वह सारे
शिवी खुद को आईने में निहार रही थी कि तभी बड़ी बुआ आ गयी,”शुकर है भगवान को ई मॉडी (बेटी)को ब्याओ हो राओ है…नाइ तो
माँ!! क्यों प्रिया के साथ जबरदस्ती मेरी भी शादी करने पर तुली हो ! मुझे पढ़ने दो,, अगर नौकरी लग गई तो अपने आप अच्छे
“हर दुल्हन का बस एक ही सपना,सुंदर,प्यारा सा घर हो अपना जिसमें सारे अपने बसते हो,और उनमें अपनों के सपने हँसते हो रिश्तों को जोड़े
शीर्षक : रिश्तों की डोर ***************************** आजकल उसके दिल में हलचल है,एक गहमागहमी है पलकों की चिलमन के नीचे सपनों की चहलक़दमी है दिल की
शीर्षक – सच हुए सपने सुहाने एक बगिया की मासूम कली दूसरे उपवन में महकने चली I यहाँ भी ख़ुशियों की बहार लाई वहाँ भी
#पापाकीपरीहोगईबड़ी पापा की परी मैं अब किसी की दुल्हन बनूँगी क्या.. वो समझेगा मुझे क्या.. मैं उनको समझूंगी बाबुल की डयोढ़ी,कैसे पार करुँगी अपने परिवार
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