सरिता तिवाडी (पारीक ) (अँधेरा प्रतियोगिता | प्रशंसा पत्र )
अरे कमला ये चोट कैसे लगी तुझे ? मेरा ये प्रश्न सुनकर कमला रोने लगी और रुंधे गले से बोली …..मालकिन कल फिर मुन्नी के
अरे कमला ये चोट कैसे लगी तुझे ? मेरा ये प्रश्न सुनकर कमला रोने लगी और रुंधे गले से बोली …..मालकिन कल फिर मुन्नी के
मैं अंधेरा हूँ हाँ वही जिससे तुम बहुत डरते हो हर गुनाह का गुनाहगार भी मैं ही होता हूँ क्यूंकी मैं भयावह जो हूँ मेरे
दिलों में उम्मीद की एक शमा जलाए रखना अंधेरा हो तो हौसलों के चिराग़ जलाए रखना ये अँधेरी काली रात भी कभी आनी जरूरी है
अंधकार तब नहीं होता जब कहीं रौशनी न हो। अंधेरा तब होता है जब रौशनी तो हो पर उसे देखने की नजर न हो। अंधेरा
जब ज़िन्दगी मै तनहाई आती है .. ज़िन्दगी सूनी हो जाती है .. दिल जाने कंहा खो जाता है .. मन ही मन घबराता है
फिरता हु मै धरती पर फिर एक बार कटपुतली हू मै टूटी मेरी डोर बार बार ठिठूरती हड्डीया धुंधलाती नजर गलत सही गलत सही मूडती
यह अंधेरा काला स्याह इंतजार किसी के लिए, तो कहीं डर का आगाज कहीं सुबह के पहले की उदासी, तो कहीं सूने मकान में रोज
अंधेरा सघन, घनघोर, मन में उथल-पुथल, पुरज़ोर , बाहर शांत, भीतर शोर, जाने अब कब होगी भोर? हम अपने अंधकार से हारे हैं, फिर भी
कुछ छोड़ आया हूं, अंधेरो मै, बीती रातों और सवेरो मै उन तपती दोपहरों मै खाली रह बसेरों मै कुछ छोड़ आया हूं अंधेरो मै
UBI stands for United By Ink®️. UBI is a Global Platform- the real-time social media interactive forum created for Readers, Writers and Facilitators alike.This platform aims to help creative souls realize their writing goals.
Click on our representatives below to chat on WhatsApp or send us an email to ubi.unitedbyink@gmail.com