अश्विनी राय (UBI धरती माँ प्रतियोगिता | सहभागिता प्रमाण पत्र)
कल का राजा अंधा था आज अंधे ही भरे हैं दरबारों में जनता बहरी गूंगी जन्मी आज के संसारों में यहां धरती किसकी माता है
कल का राजा अंधा था आज अंधे ही भरे हैं दरबारों में जनता बहरी गूंगी जन्मी आज के संसारों में यहां धरती किसकी माता है
माँ वसुंधरा:- “अरे नहीं!!नहीं,अब बस करो!!” वो रोने लगी।अब तो चिल्ला पड़ी। मगर……बड़े निर्दयी हैं सब। कोई नहीं सुनता।किसी को न इसकी पड़ी। एक आई।फिर
“धरती माँ” हिरण्यमयी,सुवर्णा,रत्नगर्भा, न जाने कितने तेरे नाम अनंत काल से तू करती आयी लालन-पालन…प्यारी धरती माँ खेल कूद कर बड़े हुए हम तेरी माटी
धरती माँ । शिबराज प्रधान। दर्पण पे लिखावट के शर्तोंमे सँवरके सुरम्यताके मोहिनी तर्जौंमे थिरकके चपल लहरों के जूदा रीत मे बँधके तेरे असीमित अंकमालमे
धरती माँ स्वर्ग से सुन्दर धरती माँ ये जान हमारी है, हम हैं बच्चे इसके ये पहचान हमारी हैI धरती माँ का एहसास कभी हम
वैसे तो मैं भी इक माँ हूँ, धरती सी लेकिन कहाँ हूँ। इससे बड़ा ना कोई दानी, इसका नहीं है कोई सानी। मीलों तक फैला
धरती है माता मेरी ,प्रकृति की है दुलारी माथे धारें पद रज ,महिमा ही गाई है।। १!! अविनाशी अवनि की, बात ही निराली सखी युगों
धरती की सुंदरता इसके पेड़ पौधे शैवाल कवक चहूँ ओर फैली ये हरियाली है छीन रहे हम नासमझ… पाने को क्षणिक खुशहाली हैं धरती के
धरती माँ **** कैसे गुणगान करूँ मैं तेरी हे धरती माँ, शत-शत नमन करूँ तुझे हे धरती माँ । बच्चों की खातिर सीने में कुदाल
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