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Hindi Poetry

तुम ही थे

कहीं बैठा था मैं अपने स्वप्न-मित्रों के साथ और लगा तभी मुझे कि एक हवा के झोकें से कुछ विचलित सा हो गया हूँ मैं

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तन्हाई की भाव-भरी बातें

कभी सुनी है तुमने तन्हाई की आवाज़बैठे थे जो साथ, हम तुम कभीहाथों में हांथ भी था, और महसूस किया थाहृदय-भावों का निर्मल चुम्बन।किंचित आँखों

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प्रकृति

जहाँ जाने के बाद वापस आने का मन ना करे जितना भी घूम लो वहाँ पर कभी मन ना भरे हरियाली, व स्वच्छ हवा भरमार

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धरती माँ

धरती यही तो है हम सबकी माँ ! इस जेसा कहाँ दूसरा ! इसकी पनाह मै ! दुिनया पलती है ! जो पल पल रंग

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ख्वाहिशें

फिर इक नयी उम्मीद, फिर इक नयी चाहत फिर इक नया सवेरा आ चल कर लें ख्वाहिशें पूरी कि जब तक साथ है तेरा और

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“अवाम का आत्मकथ्य”

हम चाहने वाले पशु हैं हम जो होता है उसे ही चाहते है बाद में उसके होने का शोक मनाते हैं बाद में जो नहीं

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“लोग”

बड़े अजीब है लोग सांप से लहराते हुए चलने वाले बात बात पर बात बदल बदल के बोलने वाले लोगों के लिए आप महज़ पीकदान

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“पिता”

आज भी देखा है मैंने पिता को शाम को कंडिया लेकर शनिवार के रोज़ कट्टे के थैले में हमारे लिए खिलौने लाते हुए पहले छुपाते

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“चुप” रहने की आसानी पर

आसान है चुप रहना बहुत आसान है बकबादियों के विवर में चुप रहकर बचे रहना कालों की दुनिया में सफेदपोश हो किसी भी अंदर के

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