1
अभिलाषा ने करवट बदली,
ली है अंगड़ाई पीड़ा ने ।
नया राग फिर छेड़ा कोई,
मेरे मन की वीणा ने ।।
2
अस्ताचल में जाकर भानु ,
उतर गए जब सागर में ।
सिंधु सिमट आया तब ,
मेरे नयनों की गागर में ।
3
करुण बाँसुरी सी बजती है,
प्राणों के स्पंदन में ।
कौन विचरने आया है ये ,
मेरे मन के कानन मैं ।।
4
छंटता नहीं तिमिर कहना,
दिनमान से जाकर ।
सिर्फ यहाँ है देह ,
कहना प्राण से जाकर ।।
5
मेरे भी अवचेतन मन में,
पल हर पल है वास तेरा।
इतना सा बस रहे अनुग्रह,
टूटे ना विश्वास मेरा ।।
मौलिक
मंजु यादव ग्रामीण
बहुत ख़ूब।