#UBI #Valentinesday
मिलन •• कितना मधुर है ये शब्द !!
और किसी प्रीतिकर मिलन का हृदय में खयाल आते ही ..
मानो कानों में सुरीली घंटियाँ बजने लगती है .. कितना सुखद
होता है ये अहसास ! कोई ~ जिसके लिये हृदय में प्रेम है ..
कोई मित्र .. कोई प्रेमपात्र .. कोई रिश्तेदार या परिवार का ही
कोई सदस्य ~ आयेगा .. उससे मिलन होगा .. हृदय हर्षित हो
जायेगा ~ ये सब कल्पनायें .. मन कर लेता है ! लेकिन .. मिलना
भी हो जाता है ~ पर खिलना कहाँ हो पाता है .. ये कल्पनायें ~
ये सपने ~ साकार कहाँ हो पाते हैं ? आपने भी इस तथ्य को
अवश्य ही महसूस किया होगा ! मिलना तो हो जाता है ~ फिर भी
मिलन कहाँ हो पाता है ? मन अतृप्त ही रह जाता है .. और फिर
किसी और मिलन की कल्पना करने लगता है !
क्यों ऐसा होता है ? क्यों ये मिलन की चाह निरंतर मन में उठती ही
रहती है .. और क्यों हर मिलन अधूरा सा रह गया प्रतीत होता है ?
गहरे में ~ अंतस्तल में ~ हर मनुष्य ( स्त्री या पुरुष ) अधूरा होता
है .. और उसे पूर्णता की तलाश होती है ! मन में ये चाह सदा बनी ही
रहती है .. कि ~ काश .. कोई मिल जाये ~ और मैं पूर्ण हो जाऊँ ..
आप्तकाम हो जाऊँ .. अधूरापन मिट जाये ! पति ,पत्नी , पिता , माता ,
पुत्र , रिश्ते नाते , समाज .. सभी होते हैं ~ फिर भी ~ मनुष्य स्वयं को
अकेला .. तन्हा पाता है .. और ये अकेलापन टीसता है ! शरीर के तल
पर भी मिलना हो जाता है , मन के तल पर भी मिलना हो जाता है ~
फिर भी ~ हर मिलन अधूरा रह जाता है ! हर व्यक्ति की अपनी सीमायें
हैं .. कामनायें हैं .. बंधन हैं .. सोच है .. अपने मन का निजी संसार है ~
और जब दो व्यक्ति मिलते हैं .. अपने अपने दायरों में बंद ~ तो पूर्ण
मिलन कैसे संभव हो सकता है ? मिलन से जिस सुख की कामना की
होती है ~ वो भ्रम टूट जाते हैं , रिश्ते बेमानी और सिर्फ स्वार्थ के बन
जाते हैं ! रिश्ते टूट टूट जाते हैं , बोझ बन जाते हैं .. जिन्हें किसी भी
तरह से निभाते रहने को ही .. हम जिम्मेवारी समझने लगते हैं ~ और
जीवन आनंद की जगह विषाद सा बन जाता है ! और इसी तलाश में
चलते चलते , जीते जीते .. उम्र का ऐसा दौर आ जाता है ~ कि पाँव
ठहरने लगते हैं .. और जिंदगी अतृप्त बेचैन ही समाप्त हो जाती है !
सच्चाई ये है .. कि ये तलाश .. बाहर के किसी भी मिलन से पूरी हो
ही नहीं सकती ! ये तलाश पूरी होती है .. आत्मा के तल पर मिलन
से ~ पर उसका तो हममें से अधिकतर को पता ही नहीं ! मनुष्य
बनता है .. स्त्री और पुरुष .. दोनों के जोड़ से ~ और प्रत्येक व्यक्ति
के भीतर अदृश्य रूप से विपरीत मौजूद रहता है ! आपने भगवान
शिव की प्रतिमा देखी होगी ~ अर्धनारीश्वर की ~ आधी नारी आधा
पुरुष .. एक साथ ! ये प्रत्येक व्यक्ति की वास्तविकता है ! और ये जो
मिलन की प्रबल आकांक्षा निरंतर मन में रहती है ~ ये भीतर की स्त्री
या पुरुष से मिलन की होती है ! ये मिलन होता है ~ परम मिलन ..
और ये मिलन संभव होता है ~ ध्यान में .. मौन में .. स्वयं में ! और
एक बार ये मिलन घट जाये ~ तो फिर बाहर के सभी मिलन भी
आनंद बन जाते हैं !!
आपके हृदय में इस परम मिलन की चाह जगे !
आपके कदम .. इस परम मिलन की ओर बढें !
आपके जीवन में .. पूर्णता की शुरुआत हो !!!!
~ ~ : : प्रेम ~ प्रणाम ~ धन्यवाद : : ~ ~
◆ ◆ ◆【 प्रमोद 】◆ ◆ ◆
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 1 / 5. Vote count: 2
No votes so far! Be the first to rate this post.